प्रस्तुत कविता २६/११ के हमले में शहीद हुए वीर योद्धाओं को मेरी एक श्रद्धांजलि है ...
गगन और समुद्र में नहीं कोई मिलाप है
आज देखो शब्द में नहीं कोई विलाप है
स्वयं के ही शोक में प्रफुल्लित समाज है
महाविनाश के लिए खड़ा हुआ विकास है
दस आतंकियों के समक्ष खड़े हुए है वीर दक्ष
वीरगति को प्राप्त कर गौरवित हो जायेंगे वक्ष
मिटा सके जो हमें , आज देखना वो कौन है
स्वयंप्रभा के समक्ष देवता भी मौन है
मौन को अशक्तता समझने की ये भूल है
पथ विरक्त करने को आज कांपता भी शूल है
आज देखो रक्त में फिर वही उबाल है
मातृभूमि के लिए खड़ा हुआ हर लाल है
मातृभूमि के लिए खड़ा हुआ हर लाल है...
Monday, November 16, 2009
Sunday, November 1, 2009
एक मच्छर से वार्तालाप
कल रात एक मच्छर को नशा हो गया
मैंने पूछा भाईसाहब कहाँ है आपको जाना
वो बोले मुझे नहीं कहीं है जाना
बस खून पीना और यहीं पर है गुनगुनाना
मैंने कहा क्या बीवी नहीं होंगी परेशान
उनका भी ध्यान रखा करें बलवान
वो बोले
वो भी यहीं कहीं पी के पड़ी होगी टुन्न
तू मेरा गान सुन नहीं तो कर दूंगा कान तेरा सुन्न
सुबह होते ही मुझे है निकलना
और रात में ये शेरो शायरी भी है पूरी करना
मै घबराई, कुछ सकुचाई, कुछ शरमाई
और फिर देकर राम की दुहाई, हिम्मत से बोली
मुझे तो लग रही है सर्दी इसलिए
मुझे तो लग रही है सर्दी इसलिए
मै तो चादर ओढ़ के सो जाऊँगी जल्दी
क्यूँ नहीं तुम दिन में गुनगुनाते
महफिल में बैठ के सबको नहीं सुनाते
वो बोले
सबको नहीं है इस कला की क़द्र
इसलिए आप ही बनो हमारे हमदर्द
तब तक माँ मुझे दे गयीं एक चिक्की
और बोलीं जला लो बेटा इसे जल्दी
वरना आँख खुल जायेगी जल्दी
मै भी गयी थी बहुत थक
और यह देख कर उन भाईसाहब का मुंह पड़ गया फुक्क
मैंने भी झुर्र से लगाई दियासलाई से उसमें आग
और वो भाईसाहब फुर्र से गए वहां से भाग ...
Subscribe to:
Posts (Atom)